Dr Babasaheb Ambedkar Jayanti 2025 | डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती 2025: भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के महानायक का पर्व – सम्पूर्ण जानकारी

Dr Babasaheb Ambedkar Jayanti 2025 : डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती 2025 (14 अप्रैल) पर जानें भीमराव रामजी अम्बेडकर का इतिहास, जीवनी, किताबें, अनमोल विचार और विश्वव्यापी समारोह। भारतीय संविधान के निर्माता, दलितों के मसीहा और सामाजिक न्याय के प्रतीक बाबासाहेब को समर्पित विस्तृत लेख।

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Table of Contents

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती 2025: भारतीय संविधान के निर्माता और सामाजिक न्याय के महानायक

परिचय

भारत के इतिहास में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं जिन्होंने न केवल देश की दिशा बदली, बल्कि करोड़ों वंचितों और शोषितों के जीवन में आशा की नई किरण जगाई। डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर, जिन्हें स्नेह और सम्मान से बाबासाहेब कहा जाता है, उन्हीं महान विभूतियों में से एक हैं। वे एक विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक और भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे। उनका जीवन सामाजिक अन्याय, असमानता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक अनवरत संघर्ष की कहानी है।

Dr Babasaheb Ambedkar Jayanti 2025

हर साल 14 अप्रैल को पूरा देश और दुनिया भर में उनके अनुयायी डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की जयंती मनाते हैं। यह दिन सिर्फ़ उनके जन्मदिन का उत्सव नहीं, बल्कि उनके विचारों, उनके संघर्षों और उनके द्वारा स्थापित समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के संवैधानिक मूल्यों को याद करने और उन्हें अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेने का अवसर है। डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती 2025 का विशेष महत्व है क्योंकि यह उनकी 144वीं जयंती होगी।

यह अवसर हमें उनके जीवन और कार्यों पर गहराई से विचार करने और वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य में उनकी प्रासंगिकता को समझने का मौका देता है। आइए, इस लेख में हम बाबासाहेब के बहुआयामी व्यक्तित्व, उनके ऐतिहासिक योगदान और अम्बेडकर जयंती के महत्व को विस्तार से जानें।

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर कौन थे? (Who is Dr Babasaheb Ambedkar?)

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक विचार हैं, एक क्रांति हैं, और करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उन्हें समझना भारत के सामाजिक, राजनीतिक और संवैधानिक इतिहास को समझना है।

Who is Dr Babasaheb Ambedkar?

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प्रारंभिक जीवन और जन्म (Birth of Br Ambedkar)

डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू छावनी (अब डॉ. अम्बेडकर नगर) में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था, जो ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार थे, और उनकी माता का नाम भीमाबाई था। वे अपने माता-पिता की चौदहवीं और अंतिम संतान थे।

बाबासाहेब का परिवार महार जाति से संबंध रखता था, जिसे समाज में ‘अछूत’ माना जाता था। यह सामाजिक पृष्ठभूमि उनके प्रारंभिक जीवन और भविष्य के संघर्षों की नींव बनी। उनके पिता सेना में थे, इसलिए उन्हें थोड़ी शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला, जो उस समय उनके समुदाय के बहुत कम लोगों को नसीब होता था। रामजी सकपाल कबीर पंथ के अनुयायी थे और अपने बच्चों को पढ़ने और कड़ी मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।

बचपन के संघर्ष और जातिगत भेदभाव

बाबासाहेब को बचपन से ही कदम-कदम पर अस्पृश्यता और गहरे सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल में उन्हें अन्य बच्चों से अलग बैठाया जाता था, उन्हें पानी के बर्तन छूने की इजाजत नहीं थी, और चपरासी की अनुपस्थिति में वे प्यासे रह जाते थे क्योंकि कोई ‘ऊंची’ जाति का व्यक्ति उन्हें पानी पिलाने को तैयार नहीं होता था।

शिक्षा: ज्ञान की अदम्य प्यास

तमाम सामाजिक बाधाओं और आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, भीमराव अम्बेडकर ने शिक्षा के महत्व को समझा और ज्ञान प्राप्त करने के लिए असाधारण दृढ़ संकल्प दिखाया। उनके पिता के सेवानिवृत्त होने के बाद परिवार मुंबई (तब बॉम्बे) चला गया।

  • स्कूली शिक्षा: उन्होंने सतारा में अपनी प्रारंभिक शिक्षा जारी रखी और बाद में मुंबई के एल्फिंस्टन हाई स्कूल में दाखिला लिया। वे संभवतः समाज के पहले छात्र थे जिन्होंने इस प्रतिष्ठित स्कूल में प्रवेश पाया। 1907 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
  • कॉलेज शिक्षा: 1912 में, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध एल्फिंस्टन कॉलेज से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में स्नातक (बी.ए.) की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान उन्हें बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय से छात्रवृत्ति मिली, जिसने उनकी उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त किया।
  • विदेश में उच्च शिक्षा:
    • कोलंबिया विश्वविद्यालय (USA): महाराजा गायकवाड़ की छात्रवृत्ति की मदद से, वे 1913 में संयुक्त राज्य अमेरिका गए। उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय से 1915 में अर्थशास्त्र में एम.ए. (Master of Arts) की डिग्री प्राप्त की। उनका शोध प्रबंध ‘प्राचीन भारतीय वाणिज्य’ (Ancient Indian Commerce) था। 1916 में, उन्होंने अपने दूसरे शोध प्रबंध ‘भारत का राष्ट्रीय लाभांश: एक ऐतिहासिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन’ (National Dividend of India: A Historic and Analytical Study) के लिए अर्थशास्त्र में पीएच.डी. (Doctor of Philosophy) की उपाधि प्राप्त की। (हालांकि डिग्री उन्हें 1927 में प्रदान की गई)।
    • लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (UK): 1916 में, वे लंदन गए और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में दाखिला लिया, जहाँ उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट थीसिस (‘The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution’) पर काम करना शुरू किया। उन्होंने कानून की पढ़ाई के लिए ग्रेज इन (Gray’s Inn) में भी पंजीकरण कराया। हालांकि, बड़ौदा छात्रवृत्ति समाप्त होने के कारण उन्हें 1917 में भारत लौटना पड़ा।
    • वापसी और पुनः विदेश गमन: भारत लौटने पर उन्हें बड़ौदा राज्य की सेवा में कार्य करना पड़ा, लेकिन वहां भी उन्हें अपमानजनक भेदभाव का सामना करना पड़ा। कुछ समय प्रोफेसर और उद्यमी के रूप में काम करने के बाद, वे अपनी बचत और कोल्हापुर के महाराजा शाहू महाराज और कुछ अन्य मित्रों की मदद से 1920 में फिर से लंदन गए।
    • लंदन और जर्मनी में डिग्रियाँ: उन्होंने LSE से 1921 में एम.एससी. (Master of Science) और 1923 में डी.एससी. (Doctor of Science) की उपाधि प्राप्त की। उनकी डी.एससी. थीसिस वही ‘The Problem of the Rupee’ थी। 1922 में उन्हें ग्रेज इन द्वारा बैरिस्टर-एट-लॉ की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने कुछ समय जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय में भी अध्ययन किया।

लोकप्रिय रूप से कहा जाता है कि डॉ. अम्बेडकर के पास लगभग 32 डिग्रियाँ थीं, जिनमें विभिन्न मानद उपाधियाँ भी शामिल थीं। वे अपने समय के सबसे योग्य और शिक्षित भारतीयों में से एक थे। उनका प्रसिद्ध कथन, “शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पिएगा वो दहाड़ेगा”, शिक्षा के प्रति उनके गहरे विश्वास और उसे सामाजिक सशक्तिकरण का सबसे शक्तिशाली हथियार मानने की उनकी सोच को दर्शाता है। उनकी शैक्षणिक यात्रा कठिनाइयों पर विजय और ज्ञान के प्रति अटूट समर्पण की एक अद्भुत मिसाल है।

डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का इतिहास और जीवनी (Bhimrao Ramji Ambedkar History, B R Ambedkar Short Biography, About Br Ambedkar)

डॉ. अम्बेडकर का जीवन केवल डिग्रियों का संग्रह नहीं था, बल्कि यह सामाजिक न्याय, मानवाधिकारों और राष्ट्र निर्माण के लिए एक सतत संघर्ष था। उनकी जीवनी कई महत्वपूर्ण पड़ावों और उपलब्धियों से भरी है।

Bhimrao Ramji Ambedkar History, B R Ambedkar Short Biography, About Br Ambedkar

सामाजिक न्याय के योद्धा

विदेश से उच्च शिक्षा प्राप्त कर लौटने के बाद, डॉ. अम्बेडकर ने अपना जीवन भारत में व्याप्त भयानक जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने महसूस किया कि केवल कानूनी या राजनीतिक सुधार पर्याप्त नहीं हैं; सामाजिक मानसिकता में क्रांतिकारी परिवर्तन आवश्यक है।

  • बहिष्कृत हितकारिणी सभा (1924): उन्होंने दलितों और अन्य बहिष्कृत वर्गों की सामाजिक और आर्थिक उन्नति के लिए इस संगठन की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षा का प्रसार करना, दलितों के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ना और उन्हें समाज की मुख्यधारा में एकीकृत करना था। सभा का आदर्श वाक्य था: “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो” (Educate, Agitate, Organise)। यह नारा आज भी सामाजिक आंदोलनों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
  • महार/महाड सत्याग्रह (1927): यह बाबासाहेब के नेतृत्व में हुए सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक आंदोलनों में से एक था। महाराष्ट्र के महाड में, दलितों को सार्वजनिक चावदार तालाब से पानी पीने की अनुमति नहीं थी, जबकि बॉम्बे विधान परिषद ने 1923 में ही इस अधिकार को मान्यता दे दी थी। 20 मार्च 1927 को, डॉ. अम्बेडकर ने हजारों दलितों के साथ चावदार तालाब तक मार्च किया और स्वयं पानी पीकर इस अमानवीय प्रतिबंध को तोड़ा। यह केवल पानी पीने का कार्य नहीं था, बल्कि यह दलितों के नागरिक अधिकारों और मानवीय गरिमा का उद्घोष था। इस घटना ने रूढ़िवादी समाज को नाराज कर दिया और बाद में उन्होंने तालाब का ‘शुद्धिकरण’ किया। बाबासाहेब ने दिसंबर 1927 में उसी स्थान पर मनुस्मृति (जो जाति व्यवस्था और महिलाओं के दमन का प्रतीक मानी जाती थी) की प्रतियों को सार्वजनिक रूप से जलाकर सामाजिक रूढ़िवादिता को सीधी चुनौती दी।
  • कालाराम मंदिर प्रवेश सत्याग्रह (1930-1935): नासिक के प्रसिद्ध कालाराम मंदिर में दलितों के प्रवेश पर प्रतिबंध था। 2 मार्च 1930 को डॉ. अम्बेडकर के नेतृत्व में हजारों सत्याग्रहियों ने मंदिर में प्रवेश के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू किया। यह सत्याग्रह लगभग पांच साल तक चला और इसमें दलितों को भारी विरोध और हिंसा का सामना करना पड़ा। हालांकि सत्याग्रह तुरंत सफल नहीं हुआ, लेकिन इसने दलितों के अधिकारों के प्रति राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता पैदा की।
  • अन्य प्रयास: उन्होंने दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों (Separate Electorates) की पुरजोर वकालत की ताकि वे अपने वास्तविक प्रतिनिधि चुन सकें। उन्होंने विभिन्न सम्मेलनों, लेखों और भाषणों के माध्यम से जाति व्यवस्था की जड़ों पर प्रहार किया और सामाजिक समानता की मांग उठाई।

भारतीय संविधान के निर्माता

स्वतंत्र भारत के निर्माण में डॉ. अम्बेडकर का सबसे महत्वपूर्ण और स्थायी योगदान भारतीय संविधान का निर्माण है। उन्हें “भारतीय संविधान का जनक” या “मुख्य वास्तुकार” कहा जाता है।

  • प्रारूप समिति के अध्यक्ष: 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, उन्हें संविधान सभा की सबसे महत्वपूर्ण समिति – प्रारूप समिति (Drafting Committee) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस समिति में कुल सात सदस्य थे, लेकिन विभिन्न कारणों से अधिकांश कार्य का बोझ डॉ. अम्बेडकर पर ही आ गया। प्रारूप समिति के एक सदस्य टी.टी. कृष्णामाचारी ने संविधान सभा में कहा था कि सदन इस बात से अवगत है कि प्रारूप समिति के सात सदस्यों में से एक ने इस्तीफा दे दिया, एक की मृत्यु हो गई, एक अमेरिका में था, एक राज्य के मामलों में व्यस्त था, और दो सदस्य दिल्ली से दूर रहते थे और अस्वस्थ थे। वास्तव में, संविधान का मसौदा तैयार करने का सारा काम डॉ. अम्बेडकर पर ही आ पड़ा।
  • संविधान में योगदान: डॉ. अम्बेडकर ने दुनिया भर के विभिन्न संविधानों का गहन अध्ययन किया और भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल एक प्रगतिशील और समावेशी संविधान का मसौदा तैयार किया। उन्होंने विशेष रूप से मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) पर जोर दिया, जिसमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और सबसे महत्वपूर्ण रूप से अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता का उन्मूलन शामिल था। उन्होंने राज्य के नीति निदेशक तत्वों (Directive Principles of State Policy) के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक न्याय के लक्ष्यों को शामिल किया। उन्होंने अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) के लिए सरकारी नौकरियों और विधायिकाओं में आरक्षण (Reservation) के प्रावधानों को सुनिश्चित किया ताकि ऐतिहासिक अन्याय का निवारण हो सके और उन्हें विकास में समान अवसर मिलें। उन्होंने एक मजबूत केंद्र के साथ संघीय ढांचे (Federal Structure) की वकालत की। उन्होंने ‘एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य’ के सिद्धांत के आधार पर सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार सुनिश्चित किया।
  • संवैधानिक नैतिकता: उन्होंने न केवल संविधान का मसौदा तैयार किया बल्कि संविधान सभा में उस पर हुई बहसों में सक्रिय रूप से भाग लिया और मसौदे के प्रावधानों का सफलतापूर्वक बचाव किया। उन्होंने संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality) के महत्व पर जोर दिया, जिसका अर्थ है कि संविधान के सफल कामकाज के लिए केवल लिखित प्रावधान ही नहीं, बल्कि लोगों और संस्थानों द्वारा संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करना भी आवश्यक है।

26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा संविधान को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को यह लागू हुआ। डॉ. अम्बेडकर का योगदान केवल एक कानूनी दस्तावेज तैयार करना नहीं था, बल्कि एक ऐसे राष्ट्र की नींव रखना था जो स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय के आदर्शों पर आधारित हो।

आर्थिक चिंतन और आरबीआई की स्थापना में भूमिका

डॉ. अम्बेडकर केवल एक समाज सुधारक और विधिवेत्ता ही नहीं, बल्कि एक प्रतिभाशाली अर्थशास्त्री भी थे। उनकी आर्थिक सोच गहरी और व्यावहारिक थी।

  • ‘द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सोल्यूशन’ (1923): लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में उनकी डॉक्टरेट थीसिस इस विषय पर थी। इस पुस्तक में, उन्होंने भारतीय मुद्रा और बैंकिंग के इतिहास का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने ब्रिटिश भारत की मुद्रा नीति की आलोचना की और तर्क दिया कि यह अस्थिर और भारतीय हितों के खिलाफ थी। उन्होंने मुद्रा की स्थिरता के लिए स्वर्ण मानक (Gold Standard) की वकालत की और तर्क दिया कि मुद्रा का प्रबंधन सरकार के बजाय एक स्वतंत्र संस्था द्वारा किया जाना चाहिए।
  • हिल्टन यंग कमीशन और आरबीआई: उनकी पुस्तक और विचारों ने हिल्टन यंग कमीशन (रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस, 1926) को बहुत प्रभावित किया। इसी कमीशन की सिफारिशों के आधार पर भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India – RBI) की स्थापना के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 पारित किया गया। RBI ने 1 अप्रैल 1935 से कार्य करना शुरू किया। इस प्रकार, डॉ. अम्बेडकर ने भारत के केंद्रीय बैंक की अवधारणा और स्थापना में महत्वपूर्ण वैचारिक योगदान दिया।
  • अन्य आर्थिक विचार: उन्होंने कृषि सुधार, भूमि सुधार, औद्योगीकरण और श्रमिकों के अधिकारों पर भी महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उन्होंने राज्य समाजवाद (State Socialism) का समर्थन किया, जिसका अर्थ था कि प्रमुख उद्योगों और कृषि भूमि का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए ताकि धन का समान वितरण हो सके। उन्होंने वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) पर जोर दिया ताकि समाज के सबसे गरीब वर्गों तक भी बैंकिंग और ऋण सुविधाएं पहुंच सकें।

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राजनीतिक सफर

डॉ. अम्बेडकर ने अपने सामाजिक और आर्थिक विचारों को राजनीतिक मंच पर लाने और दलितों तथा श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ने हेतु राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई।

  • इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (ILP): 1936 में, उन्होंने स्वतंत्र लेबर पार्टी (ILP) की स्थापना की। इसका उद्देश्य पूंजीवाद का विरोध करना था। पार्टी ने 1937 के बॉम्बे चुनावों में भाग लिया और 17 में से 14 सीटों पर जीत हासिल की। ILP ने श्रमिकों के अधिकारों, भूमि सुधारों और जातिगत भेदभाव के उन्मूलन के लिए आवाज उठाई।
  • वायसराय की कार्यकारी परिषद: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्हें 1942 से 1946 तक वायसराय की कार्यकारी परिषद (Viceroy’s Executive Council) में श्रम मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने श्रमिकों के कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण सुधार किए, जैसे काम के घंटे तय करना, समान काम के लिए समान वेतन और सामाजिक सुरक्षा योजनाएं।
  • शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन (SCF): 1942 में, उन्होंने ILP को भंग कर अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन (All-India Scheduled Castes Federation – SCF) का गठन किया। यह एक विशुद्ध रूप से दलित राजनीतिक पार्टी थी जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर दलितों के हितों का प्रतिनिधित्व करना था। हालांकि, SCF को चुनावों में अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
  • स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री: 1947 में स्वतंत्रता के बाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. अम्बेडकर को अपनी पहली कैबिनेट में कानून और न्याय मंत्री के रूप में शामिल किया। यह उनकी योग्यता और राष्ट्रीय महत्व की स्वीकृति थी, भले ही वे कांग्रेस के सदस्य नहीं थे।
  • पूना पैक्ट (1932): ब्रिटिश सरकार ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन के बाद ‘सांप्रदायिक पंचाट’ (Communal Award) की घोषणा की, जिसमें दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों का प्रावधान था, जैसा कि अम्बेडकर ने मांग की थी। महात्मा गांधी ने इसका विरोध करते हुए पूना की यरवदा जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया। गांधी का मानना था कि इससे हिंदू समाज विभाजित हो जाएगा। बढ़ते दबाव के बीच, अम्बेडकर को गांधीजी के साथ एक समझौता करना पड़ा, जिसे पूना पैक्ट कहा जाता है। इसके तहत, दलितों ने अलग निर्वाचन क्षेत्रों की मांग छोड़ दी, जिसके बदले में प्रांतीय विधानमंडलों में उनके लिए आरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 147 कर दी गई और केंद्रीय विधानमंडल में कुल सामान्य सीटों का 18% आरक्षित किया गया। हालांकि अम्बेडकर ने अनिच्छा से इस समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन वे जीवन भर मानते रहे कि पूना पैक्ट दलितों के राजनीतिक हितों के लिए हानिकारक था।
  • हिंदू कोड बिल और इस्तीफा: कानून मंत्री के रूप में, डॉ. अम्बेडकर ने हिंदू कोड बिल का मसौदा तैयार किया और उसे संसद में पेश किया। यह हिंदू व्यक्तिगत कानूनों में क्रांतिकारी सुधारों का एक समूह था, जिसका उद्देश्य महिलाओं को विरासत, विवाह और तलाक में पुरुषों के बराबर अधिकार देना था। इसमें अंतर्जातीय विवाह को वैध बनाना और बहुविवाह को समाप्त करना भी शामिल था। हालांकि, संसद के भीतर और बाहर रूढ़िवादी ताकतों ने इसका पुरजोर विरोध किया। जब नेहरू सरकार ने इस बिल को पारित करने में पर्याप्त इच्छाशक्ति नहीं दिखाई और इसे कई भागों में बांटने का फैसला किया, तो डॉ. अम्बेडकर ने सितंबर 1951 में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया।
  • रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया: अपने जीवन के अंत में, उन्होंने SCF को भंग कर एक नई, अधिक समावेशी राजनीतिक पार्टी – रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) बनाने की योजना बनाई, जो दलितों के साथ-साथ अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और समाज के सभी उत्पीड़ित वर्गों का प्रतिनिधित्व करे। हालांकि, पार्टी का औपचारिक गठन अक्टूबर 1957 में उनके निधन के बाद ही हो सका।

महिला अधिकारों के पैरोकार

डॉ. अम्बेडकर महिलाओं की समानता और सशक्तिकरण के प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि किसी भी समाज की प्रगति का वास्तविक माप उस समाज में महिलाओं की स्थिति से लगाया जा सकता है।

  • हिंदू कोड बिल: जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, हिंदू कोड बिल महिलाओं को समान अधिकार दिलाने की दिशा में उनका सबसे महत्वपूर्ण प्रयास था। उन्होंने तर्क दिया कि महिलाओं को संपत्ति, विवाह, तलाक और गोद लेने के मामलों में पुरुषों के समान अधिकार मिलने चाहिए। उन्होंने मनुस्मृति जैसे प्राचीन ग्रंथों की कड़ी आलोचना की जो महिलाओं को दोयम दर्जे का मानते थे। भले ही उनके जीवनकाल में यह बिल अपने मूल रूप में पारित नहीं हो सका, लेकिन बाद में इसे कई अधिनियमों (जैसे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955; हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 आदि) के रूप में पारित किया गया, जिसने भारतीय महिलाओं की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार किया।
  • अन्य विचार: उन्होंने महिलाओं की शिक्षा, समान वेतन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व का भी पुरजोर समर्थन किया। उन्होंने कहा था, “मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है।” उन्होंने महिलाओं से आग्रह किया कि वे सामाजिक बुराइयों और अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ें और अपने अधिकारों के लिए संगठित हों।

बौद्ध धम्म की ओर

अपने जीवन के अनुभवों और हिंदू धर्म के भीतर जाति व्यवस्था की कठोरता से निराश होकर, डॉ. अम्बेडकर ने निष्कर्ष निकाला कि दलितों को हिंदू धर्म के भीतर समानता और सम्मान कभी नहीं मिल सकता।

  • येवला घोषणा (1935): 13 अक्टूबर 1935 को, महाराष्ट्र के येवला में एक सम्मेलन में, उन्होंने ऐतिहासिक घोषणा की: “दुर्भाग्य से मैं एक अछूत हिंदू के रूप में पैदा हुआ। यह मेरे वश में नहीं था; लेकिन यह मेरे वश में है कि मैं हिंदू के रूप में न मरूं। मैं आपको आश्वासन देता हूं कि मैं हिंदू के रूप में नहीं मरूंगा।”
  • धर्मों का अध्ययन: इस घोषणा के बाद, उन्होंने अगले 21 वर्षों तक विभिन्न धर्मों – इस्लाम, ईसाई धर्म, सिख धर्म और बौद्ध धर्म – का गहन अध्ययन किया। वे एक ऐसा धर्म अपनाना चाहते थे जो समानता, तर्क और करुणा पर आधारित हो और जिसमें जाति व्यवस्था के लिए कोई स्थान न हो।
  • बौद्ध धर्म का चयन: अंततः उन्होंने बौद्ध धर्म को चुना। उनका मानना था कि बौद्ध धर्म सबसे अधिक वैज्ञानिक, तर्कसंगत और समतावादी धर्म है। वे बुद्ध की शिक्षाओं, विशेष रूप से उनके सामाजिक संदेश और जाति व्यवस्था के विरोध से बहुत प्रभावित थे।
  • नागपुर में दीक्षा (1956): 14 अक्टूबर 1956 को, विजयादशमी के दिन, नागपुर (जिसे अब दीक्षाभूमि कहा जाता है) में एक ऐतिहासिक समारोह में, डॉ. अम्बेडकर ने एक प्रमुख बौद्ध भिक्षु, महास्थविर चंद्रमणि से पारंपरिक तरीके से त्रिशरण और पंचशील ग्रहण कर बौद्ध धर्म अपना लिया। उनके साथ उनके लगभग 3,65,000 से अधिक अनुयायियों ने भी बौद्ध धर्म स्वीकार किया। यह दुनिया के इतिहास में सबसे बड़े सामूहिक धर्मांतरणों में से एक था। इस धर्मांतरण ने भारत में दलित बौद्ध आंदोलन को जन्म दिया, जो आज भी जारी है।

निजी जीवन और ‘राजगृह’

बाबासाहेब का सार्वजनिक जीवन जितना संघर्षपूर्ण और उपलब्धियों भरा था, उनका निजी जीवन भी उतार-चढ़ाव से भरा रहा।

  • रमाबाई अम्बेडकर: 1906 में, जब वे केवल 15 वर्ष के थे, उनका विवाह 9 वर्षीय रमाबाई से हुआ। रमाबाई एक अत्यंत सहायक और धर्मपरायण महिला थीं जिन्होंने बाबासाहेब की शिक्षा और सामाजिक कार्यों के दौरान अत्यधिक गरीबी और कठिनाइयों का सामना करते हुए भी उनका साथ दिया। बाबासाहेब उन्हें प्यार से ‘रामू’ कहते थे। रमाबाई का 1935 में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। बाबासाहेब ने अपनी पुस्तक ‘थॉट्स ऑन पाकिस्तान’ उन्हें समर्पित की।
  • डॉ. सविता अम्बेडकर: रमाबाई के निधन के कई वर्षों बाद, खराब स्वास्थ्य से जूझ रहे डॉ. अम्बेडकर का परिचय डॉ. सविता कबीर से हुआ, जो एक सारस्वत ब्राह्मण थीं और मुंबई के एक अस्पताल में डॉक्टर थीं। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर की देखभाल की। 15 अप्रैल 1948 को उन्होंने डॉ. सविता से विवाह कर लिया। विवाह के बाद डॉ. सविता ने बौद्ध धर्म अपना लिया। वे बाबासाहेब के अंतिम वर्षों में उनकी देखभाल करती रहीं और उनके निधन के बाद भी अम्बेडकरवादी आंदोलन में सक्रिय रहीं। उन्हें सम्मान से ‘माई’ या ‘माईसाहेब’ कहा जाता था।
  • राजगृह: डॉ. अम्बेडकर ने मुंबई के दादर स्थित हिंदू कॉलोनी में अपना घर बनवाया, जिसका नाम उन्होंने प्राचीन बौद्ध साम्राज्य की राजधानी के नाम पर ‘राजगृह’ रखा। यह घर 1931-33 के बीच बनकर तैयार हुआ। यह तीन मंजिला इमारत न केवल उनका निवास स्थान थी, बल्कि उनकी विशाल निजी लाइब्रेरी भी थी। कहा जाता है कि उनके निजी पुस्तकालय में 50,000 से अधिक पुस्तकें थीं, जो उस समय दुनिया के सबसे बड़े निजी पुस्तकालयों में से एक माना जाता था। राजगृह बाबासाहेब के बौद्धिक जीवन और ज्ञान के प्रति उनके गहरे प्रेम का प्रतीक है। आज, इसका भूतल एक संग्रहालय है और यह अम्बेडकरवादियों और बौद्धों के लिए एक पवित्र स्थल बन गया है। 2013 में इसे विरासत स्मारक (Heritage Monument) घोषित किया गया।

महापरिनिर्वाण

लंबे समय तक मधुमेह और खराब स्वास्थ्य से जूझने के बाद, डॉ. अम्बेडकर का 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनके आवास पर नींद में निधन हो गया। उन्होंने अपनी अंतिम पांडुलिपि ‘द बुद्धा एंड हिज़ धम्मा’ (जो मरणोपरांत प्रकाशित हुई) को अपनी मृत्यु से केवल तीन दिन पहले पूरा किया था।

उनके पार्थिव शरीर को मुंबई लाया गया जहां दादर चौपाटी (समुद्र तट) पर बौद्ध रीति-रिवाजों के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया गया। उस स्थान पर आज चैत्य भूमि नामक एक भव्य स्मारक बना हुआ है, जहां हर साल उनके महापरिनिर्वाण दिवस (6 दिसंबर) और जयंती (14 अप्रैल) पर लाखों अनुयायी उन्हें श्रद्धांजलि देने आते हैं।

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा लिखित पुस्तकें (How many books written by Dr Babasaheb Ambedkar)

डॉ. अम्बेडकर केवल एक नेता और समाज सुधारक ही नहीं, बल्कि एक अत्यंत विपुल लेखक और गहन विचारक भी थे। उनके लेखन ने भारतीय समाज, राजनीति, अर्थशास्त्र और धर्म पर अमिट छाप छोड़ी है। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण पुस्तकें, शोध पत्र, लेख और भाषण लिखे। माना जाता है कि उन्होंने लगभग 32 पुस्तकें और मोनोग्राफ लिखे, इसके अलावा कई अधूरे काम और विशाल पत्राचार भी हैं।

ज्ञान का सागर: प्रमुख रचनाएँ

उनके विशाल लेखन में से कुछ सबसे प्रभावशाली और महत्वपूर्ण रचनाएँ निम्नलिखित हैं:

  • ‘Annihilation of Caste’ (जाति का विनाश) (1936): यह मूल रूप से लाहौर के जात-पात तोड़क मंडल के वार्षिक सम्मेलन के लिए अध्यक्षीय भाषण के रूप में लिखा गया था, लेकिन इसकी क्रांतिकारी सामग्री के कारण सम्मेलन रद्द कर दिया गया और अम्बेडकर ने इसे स्वयं प्रकाशित किया। इस पुस्तक में, उन्होंने जाति व्यवस्था की तीखी आलोचना की है। यह आज भी जाति-विरोधी साहित्य में एक मील का पत्थर मानी जाती है।
  • ‘Who Were the Shudras?’ (शूद्र कौन थे?) (1946): इस ऐतिहासिक कृति में, डॉ. अम्बेडकर ने इंडो-आर्यन सिद्धांत को चुनौती दी और तर्क दिया कि शूद्र मूल रूप से क्षत्रिय वर्ण के थे जिन्हें ब्राह्मणों के साथ संघर्ष के कारण सामाजिक पदानुक्रम में नीचे धकेल दिया गया था। उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से शूद्रों की उत्पत्ति की एक वैकल्पिक व्याख्या प्रस्तुत की और हिंदू सामाजिक व्यवस्था की जड़ों पर सवाल उठाए।
  • ‘The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution’ (रुपये की समस्या: इसका उद्भव और इसका समाधान) (1923): यह उनकी डी.एससी. थीसिस थी और इसने भारतीय मुद्रा और वित्त पर एक मानक काम के रूप में ख्याति प्राप्त की। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, इसके विचारों ने आरबीआई की स्थापना को प्रभावित किया।
  • ‘States and Minorities: What are their Rights and How to Secure them in the Constitution of Free India’ (राज्य और अल्पसंख्यक: उनके अधिकार क्या हैं और स्वतंत्र भारत के संविधान में उन्हें कैसे सुरक्षित किया जाए) (1947): यह पुस्तक अनुसूचित जातियों की ओर से संविधान सभा को प्रस्तुत एक ज्ञापन के रूप में लिखी गई थी। इसमें उन्होंने मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों के संरक्षण और राज्य समाजवाद पर आधारित एक विस्तृत संवैधानिक मॉडल प्रस्तुत किया। इसने संविधान निर्माण प्रक्रिया को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।
  • ‘Thoughts on Pakistan’ (पाकिस्तान पर विचार) (1940): इस पुस्तक में, उन्होंने भारत के विभाजन और पाकिस्तान की मांग का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने विभाजन के पक्ष और विपक्ष में तर्कों की जांच की और निष्कर्ष निकाला कि यदि मुस्लिम अलग राष्ट्र चाहते हैं, तो विभाजन शायद अनिवार्य है, हालांकि उन्होंने इसके संभावित परिणामों पर चिंता व्यक्त की।
  • ‘What Congress and Gandhi Have Done to the Untouchables’ (कांग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया है) (1945): इस विवादास्पद पुस्तक में, उन्होंने दलितों के उत्थान के मुद्दे पर महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की नीतियों और दृष्टिकोण की कड़ी आलोचना की।
  • ‘The Buddha and His Dhamma’ (बुद्ध और उनका धम्म) (मरणोपरांत प्रकाशित, 1957): यह उनकी अंतिम कृति थी, जिसे उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में पूरा किया। इसमें, उन्होंने बौद्ध धर्म की अपनी व्याख्या प्रस्तुत की, इसे एक तर्कसंगत और सामाजिक रूप से प्रासंगिक धर्म के रूप में चित्रित किया जो आधुनिक दुनिया की समस्याओं का समाधान कर सकता है। इसे नव-बौद्धों (अम्बेडकरवादी बौद्धों) के लिए एक मार्गदर्शक ग्रंथ माना जाता है।

लेखन के मुख्य विषय और प्रभाव

डॉ. अम्बेडकर के लेखन में कई प्रमुख विषय बार-बार उभरते हैं:

  • जाति व्यवस्था की आलोचना: उन्होंने जाति को भारतीय समाज की सबसे बड़ी बुराई माना और इसके उन्मूलन के लिए बौद्धिक और सामाजिक संघर्ष किया।
  • सामाजिक न्याय और समानता: उनके सभी कार्यों का केंद्र बिंदु समाज के सबसे वंचित वर्गों – दलितों, महिलाओं, श्रमिकों – के लिए न्याय और समानता सुनिश्चित करना था।
  • संवैधानिक उपचार: वे कानून के शासन और संवैधानिक तरीकों में गहरा विश्वास रखते थे और मानते थे कि सामाजिक परिवर्तन के लिए संवैधानिक गारंटी आवश्यक है।
  • आर्थिक सशक्तिकरण: उन्होंने महसूस किया कि सामाजिक समानता के लिए आर्थिक समानता और अवसरों तक पहुंच महत्वपूर्ण है।
  • धार्मिक सुधार: उन्होंने धर्म की तर्कसंगत और नैतिक व्याख्या पर जोर दिया और ऐसे धर्म की तलाश की जो समानता और मानवीय गरिमा को बढ़ावा दे।

डॉ. अम्बेडकर का लेखन केवल अकादमिक अभ्यास नहीं था; यह उनके सामाजिक और राजनीतिक सक्रियता का अभिन्न अंग था। उनके विचारों ने न केवल भारत में दलित चेतना को जगाया, बल्कि दुनिया भर में मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय के आंदोलनों को भी प्रेरित किया है।

उनके लेखन का अध्ययन आज भी भारत और विश्व के विश्वविद्यालयों में किया जाता है और उनकी प्रासंगिकता समय के साथ कम नहीं हुई है। महाराष्ट्र सरकार ने उनके सम्पूर्ण लेखन और भाषणों को ‘डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर: राइटिंग्स एंड स्पीचेज’ (Dr. Babasaheb Ambedkar: Writings and Speeches) नामक कई खंडों में प्रकाशित किया है।

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती 2025 (Dr Babasaheb Ambedkar Jayanti 2025, Dr Bhim Rao Ambedkar Jayanti)

हर साल 14 अप्रैल को डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का जन्मदिन अम्बेडकर जयंती या भीम जयंती के रूप में पूरे भारत और दुनिया भर में बड़े उत्साह और सम्मान के साथ मनाया जाता है। यह दिन सिर्फ एक छुट्टी या उत्सव नहीं है, बल्कि बाबासाहेब के जीवन, संघर्ष और संदेश को याद करने और सामाजिक न्याय और समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

अम्बेडकर जयंती का इतिहास और महत्व

  • पहली जयंती: सार्वजनिक रूप से अम्बेडकर जयंती मनाने की शुरुआत उनके एक उत्साही अनुयायी सदाशिव रणपिसे द्वारा 14 अप्रैल 1928 को पुणे में की गई थी। तब से यह परंपरा लगातार जारी है।
  • महत्व: अम्बेडकर जयंती का महत्व बहुआयामी है:
    • श्रद्धांजलि: यह बाबासाहेब के प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन दलितों, शोषितों और महिलाओं के अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया।
    • प्रेरणा: उनका जीवन करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो दिखाता है कि कैसे दृढ़ संकल्प, शिक्षा और संघर्ष के माध्यम से सामाजिक बाधाओं को पार किया जा सकता है।
    • संवैधानिक मूल्यों का स्मरण: यह दिन हमें भारतीय संविधान में निहित समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय के मूल्यों की याद दिलाता है, जिन्हें स्थापित करने में बाबासाहेब की केंद्रीय भूमिका थी।
    • सामाजिक चेतना: यह जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने और समतामूलक समाज के निर्माण के लिए सामूहिक संकल्प लेने का अवसर है।
    • दलित गौरव का प्रतीक: अम्बेडकर जयंती दलित समुदाय के लिए आत्म-सम्मान, गौरव और सामाजिक-राजनीतिक चेतना का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गई है।

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती 2025: 134वीं जयंती

14 अप्रैल 2025 को डॉ. अम्बेडकर की 134वीं जयंती मनाई जाएगी। इस विशेष अवसर पर, उनके विचारों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। आज भी भारतीय समाज जातिगत पूर्वाग्रहों, सामाजिक असमानता और आर्थिक विषमताओं जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है। ऐसे में, बाबासाहेब का समानता, सामाजिक न्याय और बंधुत्व का संदेश पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

2025 की जयंती मनाने के लिए देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों की योजना बनाई जा रही है। उदाहरण के लिए, नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (NLSIU), बेंगलुरु में छात्र संगठन ‘सावित्री फुले अम्बेडकर कारवां’ (SPAC) द्वारा ‘दलित फेस्ट ’25’ का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें अप्रैल माह के दौरान विभिन्न कार्यक्रम जैसे चर्चा, फिल्म स्क्रीनिंग, कला प्रदर्शनी और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां शामिल हैं।

भारत में अम्बेडकर जयंती समारोह

अम्बेडकर जयंती पूरे भारत में, विशेषकर महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब और दक्षिण भारतीय राज्यों में, बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। समारोहों के कुछ सामान्य रूप इस प्रकार हैं:

  • सार्वजनिक अवकाश: भारत के अधिकांश राज्यों में 14 अप्रैल को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है। स्कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालय बंद रहते हैं।
  • श्रद्धांजलि: लोग बाबासाहेब से जुड़े महत्वपूर्ण स्थानों पर इकट्ठा होते हैं, जैसे:
    • भीम जन्मभूमि (महू, मध्य प्रदेश): उनका जन्मस्थान।
    • दीक्षाभूमि (नागपुर, महाराष्ट्र): जहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया।
    • चैत्य भूमि (मुंबई, महाराष्ट्र): उनका समाधि स्थल।
    • संसद भवन (नई दिल्ली): जहाँ उनकी प्रतिमा स्थापित है।
    • स्थानीय अम्बेडकर प्रतिमाएँ और पार्क। इन स्थानों पर उनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण किया जाता है, मोमबत्तियाँ जलाई जाती हैं और प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं।
  • जुलूस और रैलियां: शहरों और कस्बों में भव्य जुलूस (मिरवणूक) निकाले जाते हैं, जिनमें बाबासाहेब की तस्वीरें, झांकियां और नीले झंडे (अम्बेडकरवादी आंदोलन का प्रतीक) शामिल होते हैं। लोग नारे लगाते हैं और उनके गीत गाते हैं।
  • भाषण और सेमिनार: विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विचार गोष्ठियों, सेमिनारों और व्याख्यानों का आयोजन किया जाता है, जिनमें बाबासाहेब के जीवन, विचारों और योगदान पर चर्चा होती है।
  • सांस्कृतिक कार्यक्रम: गीत, संगीत, नाटक और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से उनके संदेश का प्रसार किया जाता है। कई स्थानों पर ‘भीम गीत’ (बाबासाहेब को समर्पित गीत) गाने की प्रतियोगिताएं होती हैं।
  • सामाजिक कार्य: इस दिन रक्तदान शिविर, स्वास्थ्य जांच शिविर, पुस्तक विमोचन और अन्य सामाजिक कल्याण के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
  • सामुदायिक भोजन: कई जगहों पर सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है, जो सामाजिक समरसता और बंधुत्व का प्रतीक है।

यह दिन विशेष रूप से दलित और बौद्ध समुदायों द्वारा बहुत उत्साह से मनाया जाता है, लेकिन अब समाज के सभी वर्गों के लोग इसमें भाग लेते हैं और बाबासाहेब को एक राष्ट्रीय नायक के रूप में सम्मानित करते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अम्बेडकर जयंती (How many countries celebrate Ambedkar Jayanti)

डॉ. अम्बेडकर की विरासत केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। दुनिया भर में, विशेषकर जहाँ भारतीय प्रवासी बड़ी संख्या में रहते हैं, अम्बेडकर जयंती मनाई जाती है।

  • प्रवासी समुदाय: यूनाइटेड किंगडम (UK), संयुक्त राज्य अमेरिका (USA), कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, मध्य पूर्व और अन्य देशों में रहने वाले अम्बेडकरवादी और भारतीय प्रवासी समुदाय इस दिन कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इनमें सेमिनार, सांस्कृतिक कार्यक्रम और बाबासाहेब को श्रद्धांजलि देना शामिल है।
  • आधिकारिक मान्यता:
    • 2022 में, कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत की सरकार ने 14 अप्रैल को “डॉ. बी.आर. अम्बेडकर समानता दिवस” (Dr. B.R. Ambedkar Equality Day) के रूप में मनाने की घोषणा की।
    • 2022 में ही, संयुक्त राज्य अमेरिका के कोलोराडो राज्य की सरकार ने 14 अप्रैल 2022 को “डॉ. बी.आर. अम्बेडकर समता दिवस” (Dr. B.R. Ambedkar Equity Day) के रूप में मनाया।
  • संयुक्त राष्ट्र: 2016 में, भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में डॉ. अम्बेडकर की 125वीं जयंती मनाई थी। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसे नियमित रूप से मनाने की आधिकारिक घोषणा की पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन यह उनकी वैश्विक मान्यता को दर्शाता है।
  • Google Doodle: 2015 में, गूगल ने डॉ. अम्बेडकर की 124वीं जयंती पर अपने होमपेज पर एक विशेष ‘गूगल डूडल’ बनाकर उन्हें सम्मानित किया। यह डूडल भारत सहित तीन महाद्वीपों के कई देशों में दिखाया गया था।
  • व्यापक प्रसार: विकिपीडिया जैसे स्रोतों के अनुसार, 2020 तक अम्बेडकर जयंती 100 से अधिक देशों में मनाई जा रही थी, जो उनके विचारों के वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है।

यह अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दर्शाती है कि डॉ. अम्बेडकर केवल भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व के उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जो समानता, मानवाधिकार और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

प्रेरणादायक अम्बेडकर जयंती कोट्स (Ambedkar Jayanti Quotes)

डॉ. अम्बेडकर के विचार उनके भाषणों और लेखों में बिखरे हुए हैं, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं। अम्बेडकर जयंती के अवसर पर उनके कुछ अनमोल विचारों को याद करना उचित है:

बाबासाहेब के अनमोल विचार

ये विचार हमें न केवल बाबासाहेब की गहरी सोच और दूरदर्शिता से परिचित कराते हैं, बल्कि अन्याय के खिलाफ लड़ने और एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित भी करते हैं।

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर फोटो (Dr Babasaheb Ambedkar Photo)

डॉ. अम्बेडकर की छवि भारतीय जनमानस में गहराई से अंकित है। उनकी तस्वीरें और मूर्तियाँ देश भर में और विदेशों में भी पाई जाती हैं।

Babasaheb dr b r Ambedkar Jayanti 2025
  • प्रतिष्ठित छवि: सबसे आम और प्रतिष्ठित छवि में डॉ. अम्बेडकर को अक्सर नीले रंग का सूट पहने, चश्मा लगाए, हाथ में भारत का संविधान लिए हुए या उंगली से इशारा करते हुए दिखाया जाता है। यह उंगली ज्ञान, दिशा और अधिकारों की ओर संकेत करती प्रतीत होती है। नीला रंग अक्सर अम्बेडकरवादी आंदोलन और दलित अस्मिता से जुड़ा होता है।
  • दृश्य प्रतिनिधित्व का महत्व: उनकी तस्वीरें और मूर्तियाँ केवल सजावट की वस्तुएँ नहीं हैं, बल्कि वे उनके विचारों, संघर्षों और दलितों तथा अन्य वंचित समुदायों के सशक्तिकरण का शक्तिशाली प्रतीक हैं। वे लाखों लोगों के लिए प्रेरणा और आत्म-सम्मान का स्रोत हैं।
  • प्रमुख स्थान: उनकी प्रतिमाएँ और तस्वीरें संसद भवन परिसर, विभिन्न सरकारी कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, संग्रहालयों और सार्वजनिक पार्कों में प्रमुखता से प्रदर्शित की जाती हैं। उनसे जुड़े स्मारक स्थल जैसे चैत्य भूमि, दीक्षाभूमि और राजगृह में उनकी जीवन-आकार की मूर्तियाँ और कई तस्वीरें संरक्षित हैं।
  • पहली प्रतिमा: यह जानना दिलचस्प है कि बाबासाहेब की पहली प्रतिमा उनके जीवित रहते हुए ही 1950 में कोल्हापुर शहर में स्थापित की गई थी।
Babasaheb Ambedkar Jayanti 2025

अम्बेडकर जयंती पर, उनकी तस्वीरों और प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करना उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने का एक सामान्य तरीका है।

बाबासाहेब की विरासत और आज की प्रासंगिकता

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की मृत्यु को लगभग सात दशक बीत चुके हैं, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है और उनके विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं।

अमिट छाप

  • संवैधानिक लोकतंत्र: वे आधुनिक भारत के संवैधानिक लोकतंत्र के मुख्य शिल्पकार हैं। उनके द्वारा स्थापित समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के सिद्धांत भारतीय शासन प्रणाली की नींव हैं।
  • सामाजिक न्याय: उन्होंने भारत में सामाजिक न्याय के विमर्श को मौलिक रूप से बदल दिया। उन्होंने जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता के मुद्दे को राष्ट्रीय एजेंडे पर लाया और इसके उन्मूलन के लिए कानूनी और सामाजिक आधार तैयार किया।
  • दलित चेतना: उन्होंने करोड़ों दलितों और वंचितों में आत्म-सम्मान और अधिकारों की चेतना जगाई। वे उनके लिए मुक्तिदाता और प्रेरणा के प्रतीक बन गए।
  • बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान: उनके धर्मांतरण ने भारत में बौद्ध धर्म को एक नई ऊर्जा और सामाजिक आधार प्रदान किया।
  • बौद्धिक विरासत: उनका विशाल लेखन कार्य सामाजिक विज्ञान, कानून, अर्थशास्त्र और इतिहास के छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है।

वर्तमान चुनौतियाँ और अम्बेडकर के विचार

आज भी भारत और विश्व कई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिनके समाधान के लिए डॉ. अम्बेडकर के विचार मार्गदर्शक हो सकते हैं:

  • जातिगत भेदभाव: हालांकि अस्पृश्यता कानूनी रूप से समाप्त हो गई है, लेकिन जाति आधारित भेदभाव और हिंसा अभी भी समाज के कई हिस्सों में मौजूद है। अम्बेडकर का ‘जाति का विनाश’ का आह्वान आज भी अधूरा एजेंडा है।
  • आर्थिक असमानता: बढ़ती आर्थिक खाई और संसाधनों का असमान वितरण एक बड़ी चिंता है। अम्बेडकर के राज्य समाजवाद और वित्तीय समावेशन के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
  • महिला अधिकार: महिलाओं के खिलाफ हिंसा और भेदभाव जारी है। हिंदू कोड बिल के माध्यम से लैंगिक समानता के लिए उनका संघर्ष हमें महिलाओं के अधिकारों के लिए निरंतर प्रयास करने की प्रेरणा देता है।
  • संवैधानिक मूल्यों का क्षरण: कई बार संवैधानिक संस्थाओं और मूल्यों पर हमले होते दिखते हैं। अम्बेडकर की संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा हमें संविधान की रक्षा और उसके सिद्धांतों का पालन करने की याद दिलाती है।
  • धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता: समाज में बढ़ती धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता के माहौल में, उनका तर्कसंगत और मानवतावादी दृष्टिकोण, विशेष रूप से बौद्ध धर्म की उनकी व्याख्या, शांति और सहिष्णुता का मार्ग दिखा सकती है।

डॉ. अम्बेडकर का जीवन और कार्य हमें सिखाता है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए निरंतर संघर्ष, शिक्षा और संगठन आवश्यक है। उनकी विरासत केवल दलितों या बौद्धों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे भारतीय राष्ट्र और मानवता के लिए है।

निष्कर्ष

डॉ. बाबासाहेब भीमराव रामजी अम्बेडकर एक असाधारण व्यक्तित्व थे – एक प्रकांड विद्वान, एक दूरदर्शी नेता, एक क्रांतिकारी समाज सुधारक और आधुनिक भारत के निर्माता। उन्होंने अपना जीवन अस्पृश्यता, अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ने और करोड़ों वंचितों को मानवीय गरिमा और समान अधिकार दिलाने के लिए समर्पित कर दिया। भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में, उन्होंने एक ऐसे राष्ट्र की नींव रखी जो लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के आदर्शों पर आधारित हो।

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती 2025 (14 अप्रैल) न केवल उनके जन्म का उत्सव है, बल्कि उनके विचारों और संघर्षों को याद करने का, उनसे प्रेरणा लेने का और उनके द्वारा दिखाए गए समानता, बंधुत्व और न्याय के मार्ग पर चलने का संकल्प लेने का दिन है। आज जब हमारा समाज नई चुनौतियों का सामना कर रहा है, तब बाबासाहेब के विचार हमें रास्ता दिखाने वाले प्रकाश स्तंभ की तरह हैं। उनका संदेश – “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो” – आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उनके समय में था।

आइए, हम सब मिलकर अम्बेडकर जयंती 2025 को सार्थक बनाएं और बाबासाहेब के सपनों का भारत – एक ऐसा भारत जहाँ कोई भेदभाव न हो, जहाँ सभी को समान अवसर मिलें, और जहाँ हर नागरिक गर्व और सम्मान के साथ जी सके – बनाने की दिशा में अपना योगदान दें। जय भीम!


डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती 2025 पर आधारित 6 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) दिए गए हैं:

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती कब मनाई जाती है और 2025 में इसका क्या महत्व है?

उत्तर: डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर जयंती हर साल 14 अप्रैल को मनाई जाती है, जो उनका जन्मदिन है। 2025 में, यह उनकी 134वीं जयंती होगी। यह दिन भारतीय संविधान के निर्माता, महान समाज सुधारक और दलितों के मसीहा डॉ. अम्बेडकर के जीवन, संघर्ष और योगदान को याद करने और उनके द्वारा स्थापित समानता, न्याय और बंधुत्व के मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराने का महत्वपूर्ण अवसर है।

डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर कौन थे?

उत्तर: डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर (बाबासाहेब) एक महान भारतीय विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक और दार्शनिक थे। उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू, मध्य प्रदेश में हुआ था।
उन्हें भारतीय संविधान का जनक माना जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारत में व्याप्त जातिगत भेदभाव (विशेषकर अस्पृश्यता) के खिलाफ लड़ने और दलितों, महिलाओं तथा अन्य वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने में समर्पित कर दिया। वे स्वतंत्र भारत के पहले कानून और न्याय मंत्री भी थे।

भारतीय संविधान में डॉ. अम्बेडकर का मुख्य योगदान क्या था?

उत्तर: डॉ. अम्बेडकर संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। उन्होंने संविधान के मसौदे को तैयार करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उनके प्रमुख योगदानों में मौलिक अधिकारों (विशेष रूप से समानता का अधिकार और अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता का उन्मूलन), राज्य के नीति निदेशक तत्व, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण के प्रावधान, और एक मजबूत, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य की नींव रखना शामिल है।

अम्बेडकर जयंती भारत और विश्व में कैसे मनाई जाती है?

उत्तर: भारत में, अम्बेडकर जयंती एक प्रमुख सार्वजनिक अवकाश है। लोग उनकी प्रतिमाओं पर माल्यार्पण करते हैं, विशेषकर महू (जन्मस्थान), नागपुर (दीक्षाभूमि) और मुंबई (चैत्य भूमि) जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर। जुलूस निकाले जाते हैं, सेमिनार, भाषण और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
दुनिया भर में, विशेषकर अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों में भारतीय प्रवासी समुदाय और अम्बेडकरवादी संगठन विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करके उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। कुछ स्थानों जैसे कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया और अमेरिका के कोलोराडो में इसे आधिकारिक तौर पर ‘समानता दिवस’ या ‘समता दिवस’ के रूप में भी मान्यता दी गई है।

डॉ. अम्बेडकर के कुछ प्रसिद्ध विचार (Quotes) क्या हैं?

उत्तर: डॉ. अम्बेडकर के कई विचार प्रेरणादायक हैं, जिनमें कुछ प्रमुख हैं:
“शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पिएगा वो दहाड़ेगा।”
“जीवन लंबा होने के बजाए महान होना चाहिए।”
“मैं एक समुदाय की प्रगति को उस डिग्री से मापता हूं जो महिलाओं ने हासिल की है।”
“जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं हासिल कर लेते, कानून आपको जो भी स्वतंत्रता देता है वो आपके लिए बेईमानी है।”
“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।”

डॉ. अम्बेडकर ने कितनी पुस्तकें लिखीं और उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ कौन सी हैं?

उत्तर: माना जाता है कि डॉ. अम्बेडकर ने लगभग 32 पुस्तकें और कई शोध पत्र व लेख लिखे। उनकी कुछ प्रमुख और प्रभावशाली रचनाएँ हैं:
‘Annihilation of Caste’ (जाति का विनाश)
‘Who Were the Shudras?’ (शूद्र कौन थे?)
‘The Problem of the Rupee: Its Origin and Its Solution’ (रुपये की समस्या: इसका उद्भव और इसका समाधान)
‘States and Minorities’ (राज्य और अल्पसंख्यक)
‘The Buddha and His Dhamma’ (बुद्ध और उनका धम्म) (मरणोपरांत प्रकाशित)


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